Raaja aur usake phooldan hindi kahani|राजा और उसके फूलदान हिन्दी कहानी
चीन का राजा था। उसके पास दस बहुमूल्य फूलदान थे। ऐसे फूलदान उसके पास होने का उसे बहुत ही गर्व था। उन फूलदान का विशेष ध्यान रखा जाता था। रोज़ उन फूलदान की जगह पर जाकर स्वयं परखता था कि वे सुरक्षित हैं या नही। रोज़ उन्हें एक एक से अपने हितों में लेकर सहलाता और उसी जगह पर राखदेता था।
फूलदान को सप्ताह में एक दिन नरम कोमल कपड़े से साफ किया जाता था और इसीलिए एक विषेश दास नियुक्त किया गया था। एक दिन आकस्मिक ही एक फूलदान सफाई के दौरान दास के हाथ से छूट कर गिरगया। ज़मीन पर गिरते ही उसके टुकड़े टुकड़े होगये। उस गरीब दास के तो जैसे, भय के मारे प्राण ही सूख गए। वो तुरंत ही राजा के चरणों मे गिरपड़ा और अपने प्राणों की भिक्षा मांगने लगा, लेकिन राजा का क्रोध तो सातवे आसमान पे था।
“अरे दुष्ट, तुमने मेरे प्रिय फूलदान को तोड़ा है, में तुम्हें कैसे क्षमा करुं” उसे फिरसे पहले जैसा कैसे बनाया जासकता है? ऐसा दहाड़ते हुए उसको दंडस्वरूप मृत्युदंड घोषित करदिया।
कुछ दिनों में उस सेवक को सूली पर चड़ाने की तैयारी चलरही थी। दूसरी और उसी गांव में एक बूढ़े बुज़ुर्ग को राजमहल में घटित इस घटना की जानकारी मिली। वो अपनी लाती के सहारे उस राजमहल में आगया।
उसने कहा “टूटे हुए फूलदान को पहले जैसा बनाना मुझे आता है”। इसे सुनते ही राजा की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा और उसने कहा कि अगर ऐसा होगया तो में आपको बहुमूल्य ख़ज़ानों से तौलदूंगा ऐसा कहकर उस बूढ़े व्यक्ति को फूलदान के टूटे हुए जगह पर लेगया।
बाकी के नौ फूलदान को दिखाते हुए राजा ने कहा इस टूटे हुए फूलदान को इन बाकी के फूलदान के जैसा ही बनादो।
बूढ़े व्यक्ति ने अपनक लाठी उठायी और बाकी के सभी फूलदानों को चूर चूर करदिया और उन फूलदान के टुकड़े उस कक्ष के हर एक कोने में बिखर गए। राजा तो ये दृश्य देखते ही आधा मूर्छित होगया।
ये तुमने क्या किया पागल ? ऐसा ऊंचे स्वर में चिल्लाते हुए उस बुर्जुग पर चिल्लाया।
फिर उस बुज़ुर्ग ने विनम्रता पूर्वक उस राजा से कहा: राजा आप अपने शांत मनसे जो में देखरहा हु उसे देखने की कोशिश करिये। आपके बाकी बचे फूलदान भी ना जाने कितने बेकसूरों की बली लेलेते, जैसे उस सेवक की जाने वाली है, इससे तो अच्छा एक ही कि बली सही। अब आप सिर्फ मेरी बली लेलीजिये। मुजे मृत्यु का भय नहीं है।
इतना सुनते ही राजा के मुख से एक भी शब्द नही निकला। उसको बुज़ुर्ग की बातों में सच्चाई दिखाई दी। उसको पश्चाताप हुआ कि, एक निर्जीव वस्तु की वजह से अमूल्य जीव की हत्या करके में महापाप करने जारह था। फिर उस राजा ने दास और बुज़ुर्ग दोनों का दंड क्षमा करदिया।
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